रिलेसनशिप भावार्थ यथार्थ और सच
अंग्रेजी का शब्द रेलेसंसिप और हिंदी भाषा मे कहे तो सम्बन्ध आज के समय मे सबसे महवपूर्ण अंग हो गया है! सबसे ज्यादा अर्थपूर्ण तरीके से कहे तो इसका अर्थ आज प्रेम सम्बन्ध से जोड़ा जा सकता है. रेलेसंसिप मे आगे बढ़ने को हर कोई तयार है, सबको प्रेम की अभिलाषा है, सब प्रेम के पुजारी है. आजकल के युवा समय से पहले ही लडके -लडकियों का अस्तित्व समझ लेते है अपनी जिन्दगीं मे. और उनमे से अपनी मनपसंद को गर्लफ्रेंड/ बोय्फ्रेंड बनाने के लिया उत्सुक रहते है!
आज ये एक समाजिक व्यवस्था बन गया है, और युवाओं मे उनके अस्तित्व का प्रतीक है ! इसका भाव्नात्मत्कता से कोई लेना देना नहीं है! और ये वे खुद ही इसको साबित करते रहते है समय-समय पर ! जिस प्रकार पब, होटल, शोरुम अपनी अपनी जगमगाहट के साथ खुलता है तो जाहिर है हर कोई उसको जाकर देखेगा ही! अब इसमे भावातामकता की क्या जरुरत ! जिस फलां जगह हम बरसों से जा रहे है रस लेते आ रहे है! तो क्या नए स्वाद को चखेंगे नहीं और रसास्वादन करना छोड़ देंगे, नहीं शायद कोई नहीं ये मुर्खता होगी !
यहाँ इन रसों मे ये बात तो इंसानी भावनाओ मे समझ आती है पर प्रेम सम्बन्ध या रेलासन्शिप जैसे मुद्दे पर ये रसास्वादन करना समझ नहीं आता! पर सच तो यह ही है की आज के युवा रेलासनशिप के हर रस को चखना और चूसना चाहते है, और ये तो सर्वविदित है की एक ही जगह सारे रस मिल जाये तो ऐसा तो शायद ही कोई किस्मत मे लेकर आता होगा आज के युग मे! जब प्रकृति ने भी आम जैसे फल मे भी इतनी भिन्नताए दी है तो हम एक ही तरह के आम चख कर क्यों आनंद उठाये !ये तो हमारा हक़ है प्रकृति का हमे वरदान है की सभी प्रकार के रस और स्वाद का आनंद उठाये और उस पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करे
भारतीय समाज मे पैठ बना चुकी पास्च्त्यता इसी रसास्वादन का भोग उठती है! मल्टिपल रेलसंशिप, लिविन रेलसंशिप. समलैंगिक, एकल माता-पिता जैसे ऊँचे भावार्थ वाले सामाजिक प्रकरणों को खड़ा कर एक नया ही खाका खीच दिया गया है ! ये तो खुद मे हे एक सवाल है जिनको अब भारतीय समाज मे तैयार कर के उनके उत्तर तलाशने उतार दिया गया है! भाई रस तो रस है, हम चाहे किसी मे ढूंढे या अपने पसंद के फल मे या साथी प्रेमी/ प्रेमिका मे, वो तो हमारी मर्ज़ी! जैसा हम चाहेगा या जब हमारा मन चाहे हम वैसा ही करेंगे!
अभी कुछ समय पहले हम बात कर रहे थे बोय्फ्रेंड/ गर्लफ्रेंड के कल्चर अर्थात संस्कृति की! जी हाँ ये दुःख उससे पूछो जिसको नीची निगाह से देखा गया हो इस कल्चर को ना अपनाने के लिया और साथ ही इसलिए की उसने अभी तक इस रसास्वादन को समझा ही नहीं और अभी तक अकेला या अकेली हे है! बेचारा/ बेचारी छी:! अब बही वो इंसान निंदनीय है ही जो पास्च्त्यता की चटाई पर सोय ना हो ! अब उस इंसान को आदिवासी समझ कर दुत्कारा ही जायेगा ना!
इससे भी ज्यादा और सोचने वाली बात है की कोई पानी मे उतरे और गीला ना हो, तो ये भला कैसे हो सकता है !नए आर्थिक समाजीकरण, वैश्वीकरण, कोर्पोरेट कल्चर जैसी उत्क्रिस्ट व्यवस्थाओ मे हर किसी से मिलना जुलना, उठना बैठना तो होता ही होगा! तो ऐसे मे हमाम से सूखा ही निकल आने की बात किसको हजम होगी! जब सब खुछ माहोल मे यानि कालेज, आफिस, पार्टी, डिस्को, पब इत्यादी मे पानी की तरह चारो ओर मौजूद है तो ऐसे मे सूखा रहना तो निहायत हेई शर्मा की बात है ही!
तो ऐसे रस्वादन को और हमाम कल्चर को पास्चात्यता ने हमारी ड्योढी पर ला कर रख दिया है! इन्द्रियों का
दोहन और भावनाओ का हनन तो वहा लगा ही रहता है !
जिस भारतीय सभ्यता मे संस्कार जैसे मानक को मनुष्य की श्रेष्ठता का मानक माना गया है, वहाँ इन्द्रियों के रसास्वादन ने पस्चात्यता की पैनी नोक से ऐसा वार किया है वह हलाहल खून की तरह अभी बह ही रहा है और अपनी जिन्दगी की भीख मांग रहा है!
सवाल ये भी है की हम क्यों पस्च्त्यता का डंका क्यों पीट रहे है! प्रेमाकांछा, प्रेमोन्माद, मिलाप, प्रजनन तो सृष्टी के सभी प्राणियों को मिला है चाहे वह पशु, पक्छी, कीट, जलचर, भारतीय, चीनी, अमरीकी मनुष्य कोई भी हो! सवाल और समस्या आसान नहीं है क्या हम सभी मनोवेग और इन्द्रोयो के दास हो गए है! प्रजनन और सम्भोग तो सभी पशु-पक्छी करते है और उसी मे लीन रहते और प्रकृति के नियम को पूरा करता है! पर मनुष्य किस मनोवेग का गुलाम हो रहा है!
रिलेसनन्शिप के नाम पर नए से नए रस्वादन के लिए तैयार रहता है! झूठ, धोखा, उन्माद, छल जैसे अमानवीय कृत्यों की नयी खेप तैयार कर रहा है !भारतीय कथाओ मे बडे से बडे ऋषियों को अप्सराओ ने अपने तप के पथ से हटा दिया था! और अब इसी रसावादन की अप्सरा ने आज हर किसी को भावनात्मकता और आत्मीय प्रेम के पथ से हटा कर रख दिया है है!
ये रसास्वादन अब आने वाले कल मे आधुनिकता का प्रतीक तो होगा परन्तु उसने भावनात्मकता को जड़ से उधेड़ कर रख दिया होगा!
यहाँ इन रसों मे ये बात तो इंसानी भावनाओ मे समझ आती है पर प्रेम सम्बन्ध या रेलासन्शिप जैसे मुद्दे पर ये रसास्वादन करना समझ नहीं आता! पर सच तो यह ही है की आज के युवा रेलासनशिप के हर रस को चखना और चूसना चाहते है, और ये तो सर्वविदित है की एक ही जगह सारे रस मिल जाये तो ऐसा तो शायद ही कोई किस्मत मे लेकर आता होगा आज के युग मे! जब प्रकृति ने भी आम जैसे फल मे भी इतनी भिन्नताए दी है तो हम एक ही तरह के आम चख कर क्यों आनंद उठाये !ये तो हमारा हक़ है प्रकृति का हमे वरदान है की सभी प्रकार के रस और स्वाद का आनंद उठाये और उस पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करे
भारतीय समाज मे पैठ बना चुकी पास्च्त्यता इसी रसास्वादन का भोग उठती है! मल्टिपल रेलसंशिप, लिविन रेलसंशिप. समलैंगिक, एकल माता-पिता जैसे ऊँचे भावार्थ वाले सामाजिक प्रकरणों को खड़ा कर एक नया ही खाका खीच दिया गया है ! ये तो खुद मे हे एक सवाल है जिनको अब भारतीय समाज मे तैयार कर के उनके उत्तर तलाशने उतार दिया गया है! भाई रस तो रस है, हम चाहे किसी मे ढूंढे या अपने पसंद के फल मे या साथी प्रेमी/ प्रेमिका मे, वो तो हमारी मर्ज़ी! जैसा हम चाहेगा या जब हमारा मन चाहे हम वैसा ही करेंगे!
अभी कुछ समय पहले हम बात कर रहे थे बोय्फ्रेंड/ गर्लफ्रेंड के कल्चर अर्थात संस्कृति की! जी हाँ ये दुःख उससे पूछो जिसको नीची निगाह से देखा गया हो इस कल्चर को ना अपनाने के लिया और साथ ही इसलिए की उसने अभी तक इस रसास्वादन को समझा ही नहीं और अभी तक अकेला या अकेली हे है! बेचारा/ बेचारी छी:! अब बही वो इंसान निंदनीय है ही जो पास्च्त्यता की चटाई पर सोय ना हो ! अब उस इंसान को आदिवासी समझ कर दुत्कारा ही जायेगा ना!
इससे भी ज्यादा और सोचने वाली बात है की कोई पानी मे उतरे और गीला ना हो, तो ये भला कैसे हो सकता है !नए आर्थिक समाजीकरण, वैश्वीकरण, कोर्पोरेट कल्चर जैसी उत्क्रिस्ट व्यवस्थाओ मे हर किसी से मिलना जुलना, उठना बैठना तो होता ही होगा! तो ऐसे मे हमाम से सूखा ही निकल आने की बात किसको हजम होगी! जब सब खुछ माहोल मे यानि कालेज, आफिस, पार्टी, डिस्को, पब इत्यादी मे पानी की तरह चारो ओर मौजूद है तो ऐसे मे सूखा रहना तो निहायत हेई शर्मा की बात है ही!
तो ऐसे रस्वादन को और हमाम कल्चर को पास्चात्यता ने हमारी ड्योढी पर ला कर रख दिया है! इन्द्रियों का
दोहन और भावनाओ का हनन तो वहा लगा ही रहता है !
जिस भारतीय सभ्यता मे संस्कार जैसे मानक को मनुष्य की श्रेष्ठता का मानक माना गया है, वहाँ इन्द्रियों के रसास्वादन ने पस्चात्यता की पैनी नोक से ऐसा वार किया है वह हलाहल खून की तरह अभी बह ही रहा है और अपनी जिन्दगी की भीख मांग रहा है!
सवाल ये भी है की हम क्यों पस्च्त्यता का डंका क्यों पीट रहे है! प्रेमाकांछा, प्रेमोन्माद, मिलाप, प्रजनन तो सृष्टी के सभी प्राणियों को मिला है चाहे वह पशु, पक्छी, कीट, जलचर, भारतीय, चीनी, अमरीकी मनुष्य कोई भी हो! सवाल और समस्या आसान नहीं है क्या हम सभी मनोवेग और इन्द्रोयो के दास हो गए है! प्रजनन और सम्भोग तो सभी पशु-पक्छी करते है और उसी मे लीन रहते और प्रकृति के नियम को पूरा करता है! पर मनुष्य किस मनोवेग का गुलाम हो रहा है!
रिलेसनन्शिप के नाम पर नए से नए रस्वादन के लिए तैयार रहता है! झूठ, धोखा, उन्माद, छल जैसे अमानवीय कृत्यों की नयी खेप तैयार कर रहा है !भारतीय कथाओ मे बडे से बडे ऋषियों को अप्सराओ ने अपने तप के पथ से हटा दिया था! और अब इसी रसावादन की अप्सरा ने आज हर किसी को भावनात्मकता और आत्मीय प्रेम के पथ से हटा कर रख दिया है है!
ये रसास्वादन अब आने वाले कल मे आधुनिकता का प्रतीक तो होगा परन्तु उसने भावनात्मकता को जड़ से उधेड़ कर रख दिया होगा!
No doubt we have more examples of youth involved in relatiopnships where relationships end prematurely but we have examples of good relationships also like NarayanMurthi ,Sachin , Hrithik to name a few .... not to forget Lord Krishan .
ReplyDeleteWhat is needed at this time is the sense of responsibility in youth while entering a relationship .. recognizing the culture and above all taking parents in to confidence .
With the amount of metro culture growing and empowerment in young girls and Boys society can not afford to hate this culture .
Society is changing .
First of all thanks to Kavyanjali for noticing one of the critical issue
ReplyDeletethat our young generation is influenced.
Its time to raise the voice against this culture .
I specially blame media n Bollywood for this.
Adult scene are shown in daily soap,advertisment,movies and even news are not far
making huge impact on todays youth.
Have a look at the song Munni n Sheela infact listen the words of the song
you would understand better what i want to say.
I feel ashamed when parent are supporting their child to perform on such songs.
Young generation is following the footsteps of their favorite actress /actor and
do not hesitate to imitiate the act.
And would reply you proudly ab mein bada ho gaya hu!
I know What is wrong and right.
Let me live my life in my style.
Watching good things will let them to think good
Good thinking making a good human being.
We can change this culture if media and bollywood support us
(avoiding uncessary contents) as they are one of the proven tools
which has had brought several changes in society .
Along with this ,parents should not forget their duties
spending enough time with their children and
keeping track of their activites.
Chandrakant Tale
Sr Software Engineer
aurionPro Solutions Ltd
chandrakant.tale@auriopro.com