मर गया मै आज, मुझे ना बुलाना!
भूल गया मै इंसानियत, देख कर ऐसा ज़माना!
कहीं मदद को पाँव ठहरते है नहीं!
मूंद लेता हूँ मै आंखे देख कर किसी की जरुरत!
चुप ही रहता हूँ जान कर भी बुरी कोई हकीकत
छोड़ दिया मैने इंसान को इंसान समझना!
छूट गयी आदत जबान से प्रेम कहना
मर गया आज मै मुझे ना बुलाना!
दर्द से किसी के मै पिघलता हू नहीं!
बिना जरुरत स्वार्थ के संभालता हूँ नही!
किसी के फर्क से मै मन से मचलता हूँ नहीं !
मर गया खुदा का जब वो बनाया इंसान
समझ लेना मै भी आज अब जिंदा हूँ नहीं!
मर गया आज मै, मुझे ना बुलाना!
तन को अग्नी मे जला के कोई क्या मरे!
मन के एह्साह को मार के मै तो आज ज़िंदा हूँ नहीं!
मर गया खुदा का जब वो बनाया इंसान
समझ लेना आज मै भी ज़िंदा हूँ नहीं!
bahut badhuya!!! han aj ke insaan aise hi ho gye hai jinhe sirf or sif apne se matlb hai unhe dusron ke dard se dard nhi hota hai. sach kaha tumne mar gye hai wo unhe na bulana!!!!
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