मर गया मै आज, मुझे ना बुलाना!
भूल गया मै इंसानियत, देख कर ऐसा ज़माना!
कहीं मदद को पाँव ठहरते है नहीं!
मूंद लेता हूँ मै आंखे देख कर किसी की जरुरत!
चुप ही रहता हूँ जान कर भी बुरी कोई हकीकत
छोड़ दिया मैने इंसान को इंसान समझना!
छूट गयी आदत जबान से प्रेम कहना
मर गया आज मै मुझे ना बुलाना!
दर्द से किसी के मै पिघलता हू नहीं!
बिना जरुरत स्वार्थ के संभालता हूँ नही!
किसी के फर्क से मै मन से मचलता हूँ नहीं !
मर गया खुदा का जब वो बनाया इंसान
समझ लेना मै भी आज अब जिंदा हूँ नहीं!
मर गया आज मै, मुझे ना बुलाना!
तन को अग्नी मे जला के कोई क्या मरे!
मन के एह्साह को मार के मै तो आज ज़िंदा हूँ नहीं!
मर गया खुदा का जब वो बनाया इंसान
समझ लेना आज मै भी ज़िंदा हूँ नहीं!
Dec 27, 2010
Dec 23, 2010
Dec 18, 2010
Muungfaliwala( Mungfali versus Chaumeen)
मूंगफली वाला!!!
अपनी हंडिया की गर्मी से वो मूंगफली खिला रहा था!
और सामने खड़ा चाउमीन वाला फटाफट प्लेट भर भर चाउमीन खिला रहा था!
कोहरा और ठण्ड और रास्ते का किनारा !
मूंगफली वाला बैठा ताके हर राही का सहारा !
अपनी मूंगफली पर बिचारा इतराता कैसे !
कुहरे की धुंध मे, हंडिया के धुंवे से, राही मे चाव जगाता कैसे!
माटी की खुशबू मे खूब भूंजी है, टुकुर टुकुर बतला रहा था!
चाउमीन वाला चीन की तरह जोर तरक्की दिखला रहा था!
दोनों नरम थी, दोनों गरम थी, दोनों सड़क पर थी आमने सामने !
बदला चस्का और चाव स्वाद का आज समय ये उसको जता रहा था !
वही काढ़ाही , वही आग, वही दोनों गरीब
पर चाउमीन वाले की भरी गरम जेब
मूंगफली वाले की भरी गरम डलिया को जाते जाते ठेंगा दिखा रहा था!
अपनी हंडिया की गर्मी से वो मूंगफली खिला रहा था!
और सामने खड़ा चाउमीन वाला फटाफट प्लेट भर भर चाउमीन खिला रहा था!
कोहरा और ठण्ड और रास्ते का किनारा !
मूंगफली वाला बैठा ताके हर राही का सहारा !
अपनी मूंगफली पर बिचारा इतराता कैसे !
कुहरे की धुंध मे, हंडिया के धुंवे से, राही मे चाव जगाता कैसे!
माटी की खुशबू मे खूब भूंजी है, टुकुर टुकुर बतला रहा था!
चाउमीन वाला चीन की तरह जोर तरक्की दिखला रहा था!
दोनों नरम थी, दोनों गरम थी, दोनों सड़क पर थी आमने सामने !
बदला चस्का और चाव स्वाद का आज समय ये उसको जता रहा था !
वही काढ़ाही , वही आग, वही दोनों गरीब
पर चाउमीन वाले की भरी गरम जेब
मूंगफली वाले की भरी गरम डलिया को जाते जाते ठेंगा दिखा रहा था!
Dec 17, 2010
What it takes to be a girl!!! Nothing…. Just!!!!!!!!!!!!!!!!!
What it takes to be a girl!!! Nothing…. Just!!!!!!!!!!!!!!!!!
- Just a simple list of obedient lawful instructions from every elder member of family (girlzz you just cant ignore and skip it)
- A simple paved path as follow up of life(girlzz you cant slip on it)
- A simple betrayal from your dream coz they might be costly than you are worth(hey you buy accessories and make ups better)
coz you are not made to be decisive about yourself
#A simple out and out possession of meek gestures and postures
- coz society keeps an eyes on you making all the girls to sit at home
- coz one day you need to be groomed and ultimately grow as a perfect girl
- coz you need to learn to listen to everyone around you without a reactive attitude
- coz one day that will be asked for your matrimonial you know..(you bet it)
- Lest no friend falls in love with you
# A dual tech training i.e. homely plus educated gorgeous, Mind it! Still free of words, voice and mind…!!haa
#A meek mute charactered attitude
- Coz future wives are not at all appreciated and accepted with shrilly voice
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Dec 8, 2010
Where Do You Keep Your Pity For Them
He was walking lame. He was weak. His two hind legs were bent and creeping and his forelegs were trying to pull them and walk. The blackish brown weak tender body of the dog, I gazed. He was crossing the heavy traffic road with high speed vehicles and the heavy rush on road could have killed him. But it was same ordained destiny that had made him lame was saving him from being kicked and killed under speedy monsters.
I, at once got my eyes over the lame animal on road, as I was also trying to cross the road but feared the horrendous steel monsters. The lame creature on the road grabbed my attention, pushed my hearts beat up, when I saw him just at an inch of distance from the wheels of a rowdy vehicle. Ah! To the almighty’s grace he was saved and kept crawling bent on his weak legs.
His weakness, his difficulty to walk was obvious, they just struck to my eyes and my heart grew pity on him. My eyes got filled with moist questions. God! Why have you made such a dumb creature lame and week? His quietude and dumbness in itself is a curse and now you have made him lame too, leaving him into the hands of inhumanity to meet his fate and death.
I realized, he was being suffered because he is an animal. He was being ignored because he is an animal. He was being killed because he is an animal. A weak, numb and dumb animal! My heart grew filled with pity as a weak dumb animal was suffering and wandering like this for his survival. And we, to the least, I could not do nothing. In fact the truth is that we all have inculcated to show an anomalous behavior toward our animals. Yes we have! It is because in none of our interests and requirements of our daily lives they are needed now.
This is just one of the incidents that come across our eyes of ill treatment, ill behavior and attitude towards these animals. The hit and dead animals’ body lying and decaying on roads, pelting of stray animals like cows, dogs, cats, hungry animals feeding on dumps and garbage is quite common. Though we are responsible for their habitat less condition, making them wandering for food, shelter and safety, proudly pronounce them to be called as stray animals.
So many incidents keep coming across eyes and we all docile humans are learning to become dumb animals acquiring this inhuman behavior. A man is a social animal and has been allowed by almighty to live our lives along with beautiful nature bountiful diverse animals. But what we are living for is still to be realized, rendering the ecology of earth being poorly hindered.
- · Tigers being killed, is now being bemoaned with roars of Save! Them.
- · Sea creatures breaths are being diluted with concentrated profitable but oil spill mistakes.
- · Elephants being punished with death for their big Tusky show up.
- · Perching birds coming near home are being punished with shocking currents over their candid freedom behavior.
- · Reptile snakes are beaten to repent on their mistaken rattled entry in our homes.
- · Hungered wandering monkeys now are a part menace on our terrace and our land as they don’t know where to swing now.
- Who is harming whom is still a debate and who will save who will always be a question. Neither my pity could do anything to make them live and survive nor could reading of this concerned article bring a change in our attitude towards our animals. Only a step is needed to become again humans and realize importance of our ecological system, love, learn and respect it for every living creature without finding them as a hindrance in our fast growing urbanization and development.
Remember we need them and will always need them.
Love animals and value their lives
Nov 2, 2010
Ehsaas!!!! Wo Sachchey Pal Zindagee Key
एहसास!!! वो सच्चे पल ज़िन्दगी के
एहसास वो है जिसे मन की आंखे, वो जिससे अतमा के कण सुनते है और वो जिससे दिल की धडकने पढ़ती है ! वो जिसे पढने के लिया शब्द की जरुरत नहीं होती! जो बिना किसी रूप के भी दिख जाता है! जो बिना शब्दों के भी सुना जाता है! और वो जो मीलो सफ़र तय कर के भी आप तक पहुँच सकता है, अपने सुन्दर और पवित्र रूप मे अनजाना होते ही भी पहचाना जा सकता है!
एहसास है
रोश्नी की तरह खुद मे सातों रंग संजोये
खुशबू की तरह,किसी भी जगह कही भी दीवारों से परे जा सकता है !
पानी की तरह, निर्मल और शीतल है जिससे तन और मन को छूने से संतुस्टी होती है!
निराकार है, हवा की तरह पास आकर भी दूर जाता है और दूर जाकर फिर पास लौट आता है!
एहसास की खूबसूरती और पवित्रता इसलिए है की हम शब्द बोल कर बहुत कुछ कह सकते है और बता देते है! पर जो बात इंसान जबान से ना कह कर खामोशी मे भी बयान कर दे, और दूसरा उसे महसूस कर ले तो उसकी सत्यता और अस्तित्व का अलग ही वर्णन और रूप होता है!
जब शिशु जन्म लेता है तो माँ को शब्दों की जरुरत नहीं होती, माँ का स्पर्श , माँ का प्यार ही हमे ये एहसास दिला देता है की वो कितनी समर्पित है अपने सन्तान के लिए! जन्म से लेकर युवावस्था तक माँ कितनी बार कहती है की वो हमे प्यार करती है पर उसके दिए छोटे छोटे सुख से, उसे लाड से, उसके बलिदान से अपने बच्चों के प्रती उसका प्यार उसका समर्पण महसूस हो ही जाता है!
एहसास ही है जिसने शब्दों की दुनिया को पीछे छोड़ रखा है, और शब्दों के झूठ और जाल से पर्दा हटाता रहता है! एहसास सच की राह मे चलता हुआ रिश्तों के बंधन के सच को दर्शाता है, झूठ-कपट के डाले पर्दों को तोड़ कर सच का चेहरा दिखाता है!
- मन मे किसी के प्यार का एहसास हो तो चाहे लाख उससे नाराजगी हो कोई उससे ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता!
- कोई कितनी भी बड़ी गलती केर ले पर यदि उसके मन मे अगर उसकी गलती का एहसास है तो उसे बड़ी से बड़ी अदालत भी छमा कर देती है!
- जिसको अपने लक्ष्य से अपनी द्रढ़ता का एहसास है उसे दुनिया मे कोई भी मुश्किल हतोत्साहित नहीं कर सकती है!
- ज़िंदगी मे अगर किसी के साथ होने का एहसास है तो तो जिन्दगी की हर मुश्किल असं लगती है सुर उसका हल भी निकलत है!
- इस दुनिया मे लाने वाला ईस्वर भी तो हमरे आगे मूक ही रहता है वो कही भी शब्द से नज़र नहीं अता है! पर फिर भी हमारे चारो ओर उसके हनी का एहसास है! वो कभी नहीं कहता की मई हूँ, पर वो हर तरफ प्रकृती मे अपने हनी का एहसास और विश्वास दिला ही देता है!
और सच ही एहसास जैसी अद्भुत अनुभूति की रचना ईस्वर के सिवा और कौन कर सकता है! एहसास ने अपने चमकीले रंग से हर वस्तू और विचार मे सत्य और विश्वाश को आज की कायम रखा हुआ है!
Oct 29, 2010
Relationship Bhawarth Yatharth aur Sach( Relationship the truth of today's youth)
रिलेसनशिप भावार्थ यथार्थ और सच
अंग्रेजी का शब्द रेलेसंसिप और हिंदी भाषा मे कहे तो सम्बन्ध आज के समय मे सबसे महवपूर्ण अंग हो गया है! सबसे ज्यादा अर्थपूर्ण तरीके से कहे तो इसका अर्थ आज प्रेम सम्बन्ध से जोड़ा जा सकता है. रेलेसंसिप मे आगे बढ़ने को हर कोई तयार है, सबको प्रेम की अभिलाषा है, सब प्रेम के पुजारी है. आजकल के युवा समय से पहले ही लडके -लडकियों का अस्तित्व समझ लेते है अपनी जिन्दगीं मे. और उनमे से अपनी मनपसंद को गर्लफ्रेंड/ बोय्फ्रेंड बनाने के लिया उत्सुक रहते है!
आज ये एक समाजिक व्यवस्था बन गया है, और युवाओं मे उनके अस्तित्व का प्रतीक है ! इसका भाव्नात्मत्कता से कोई लेना देना नहीं है! और ये वे खुद ही इसको साबित करते रहते है समय-समय पर ! जिस प्रकार पब, होटल, शोरुम अपनी अपनी जगमगाहट के साथ खुलता है तो जाहिर है हर कोई उसको जाकर देखेगा ही! अब इसमे भावातामकता की क्या जरुरत ! जिस फलां जगह हम बरसों से जा रहे है रस लेते आ रहे है! तो क्या नए स्वाद को चखेंगे नहीं और रसास्वादन करना छोड़ देंगे, नहीं शायद कोई नहीं ये मुर्खता होगी !
यहाँ इन रसों मे ये बात तो इंसानी भावनाओ मे समझ आती है पर प्रेम सम्बन्ध या रेलासन्शिप जैसे मुद्दे पर ये रसास्वादन करना समझ नहीं आता! पर सच तो यह ही है की आज के युवा रेलासनशिप के हर रस को चखना और चूसना चाहते है, और ये तो सर्वविदित है की एक ही जगह सारे रस मिल जाये तो ऐसा तो शायद ही कोई किस्मत मे लेकर आता होगा आज के युग मे! जब प्रकृति ने भी आम जैसे फल मे भी इतनी भिन्नताए दी है तो हम एक ही तरह के आम चख कर क्यों आनंद उठाये !ये तो हमारा हक़ है प्रकृति का हमे वरदान है की सभी प्रकार के रस और स्वाद का आनंद उठाये और उस पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करे
भारतीय समाज मे पैठ बना चुकी पास्च्त्यता इसी रसास्वादन का भोग उठती है! मल्टिपल रेलसंशिप, लिविन रेलसंशिप. समलैंगिक, एकल माता-पिता जैसे ऊँचे भावार्थ वाले सामाजिक प्रकरणों को खड़ा कर एक नया ही खाका खीच दिया गया है ! ये तो खुद मे हे एक सवाल है जिनको अब भारतीय समाज मे तैयार कर के उनके उत्तर तलाशने उतार दिया गया है! भाई रस तो रस है, हम चाहे किसी मे ढूंढे या अपने पसंद के फल मे या साथी प्रेमी/ प्रेमिका मे, वो तो हमारी मर्ज़ी! जैसा हम चाहेगा या जब हमारा मन चाहे हम वैसा ही करेंगे!
अभी कुछ समय पहले हम बात कर रहे थे बोय्फ्रेंड/ गर्लफ्रेंड के कल्चर अर्थात संस्कृति की! जी हाँ ये दुःख उससे पूछो जिसको नीची निगाह से देखा गया हो इस कल्चर को ना अपनाने के लिया और साथ ही इसलिए की उसने अभी तक इस रसास्वादन को समझा ही नहीं और अभी तक अकेला या अकेली हे है! बेचारा/ बेचारी छी:! अब बही वो इंसान निंदनीय है ही जो पास्च्त्यता की चटाई पर सोय ना हो ! अब उस इंसान को आदिवासी समझ कर दुत्कारा ही जायेगा ना!
इससे भी ज्यादा और सोचने वाली बात है की कोई पानी मे उतरे और गीला ना हो, तो ये भला कैसे हो सकता है !नए आर्थिक समाजीकरण, वैश्वीकरण, कोर्पोरेट कल्चर जैसी उत्क्रिस्ट व्यवस्थाओ मे हर किसी से मिलना जुलना, उठना बैठना तो होता ही होगा! तो ऐसे मे हमाम से सूखा ही निकल आने की बात किसको हजम होगी! जब सब खुछ माहोल मे यानि कालेज, आफिस, पार्टी, डिस्को, पब इत्यादी मे पानी की तरह चारो ओर मौजूद है तो ऐसे मे सूखा रहना तो निहायत हेई शर्मा की बात है ही!
तो ऐसे रस्वादन को और हमाम कल्चर को पास्चात्यता ने हमारी ड्योढी पर ला कर रख दिया है! इन्द्रियों का
दोहन और भावनाओ का हनन तो वहा लगा ही रहता है !
जिस भारतीय सभ्यता मे संस्कार जैसे मानक को मनुष्य की श्रेष्ठता का मानक माना गया है, वहाँ इन्द्रियों के रसास्वादन ने पस्चात्यता की पैनी नोक से ऐसा वार किया है वह हलाहल खून की तरह अभी बह ही रहा है और अपनी जिन्दगी की भीख मांग रहा है!
सवाल ये भी है की हम क्यों पस्च्त्यता का डंका क्यों पीट रहे है! प्रेमाकांछा, प्रेमोन्माद, मिलाप, प्रजनन तो सृष्टी के सभी प्राणियों को मिला है चाहे वह पशु, पक्छी, कीट, जलचर, भारतीय, चीनी, अमरीकी मनुष्य कोई भी हो! सवाल और समस्या आसान नहीं है क्या हम सभी मनोवेग और इन्द्रोयो के दास हो गए है! प्रजनन और सम्भोग तो सभी पशु-पक्छी करते है और उसी मे लीन रहते और प्रकृति के नियम को पूरा करता है! पर मनुष्य किस मनोवेग का गुलाम हो रहा है!
रिलेसनन्शिप के नाम पर नए से नए रस्वादन के लिए तैयार रहता है! झूठ, धोखा, उन्माद, छल जैसे अमानवीय कृत्यों की नयी खेप तैयार कर रहा है !भारतीय कथाओ मे बडे से बडे ऋषियों को अप्सराओ ने अपने तप के पथ से हटा दिया था! और अब इसी रसावादन की अप्सरा ने आज हर किसी को भावनात्मकता और आत्मीय प्रेम के पथ से हटा कर रख दिया है है!
ये रसास्वादन अब आने वाले कल मे आधुनिकता का प्रतीक तो होगा परन्तु उसने भावनात्मकता को जड़ से उधेड़ कर रख दिया होगा!
यहाँ इन रसों मे ये बात तो इंसानी भावनाओ मे समझ आती है पर प्रेम सम्बन्ध या रेलासन्शिप जैसे मुद्दे पर ये रसास्वादन करना समझ नहीं आता! पर सच तो यह ही है की आज के युवा रेलासनशिप के हर रस को चखना और चूसना चाहते है, और ये तो सर्वविदित है की एक ही जगह सारे रस मिल जाये तो ऐसा तो शायद ही कोई किस्मत मे लेकर आता होगा आज के युग मे! जब प्रकृति ने भी आम जैसे फल मे भी इतनी भिन्नताए दी है तो हम एक ही तरह के आम चख कर क्यों आनंद उठाये !ये तो हमारा हक़ है प्रकृति का हमे वरदान है की सभी प्रकार के रस और स्वाद का आनंद उठाये और उस पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करे
भारतीय समाज मे पैठ बना चुकी पास्च्त्यता इसी रसास्वादन का भोग उठती है! मल्टिपल रेलसंशिप, लिविन रेलसंशिप. समलैंगिक, एकल माता-पिता जैसे ऊँचे भावार्थ वाले सामाजिक प्रकरणों को खड़ा कर एक नया ही खाका खीच दिया गया है ! ये तो खुद मे हे एक सवाल है जिनको अब भारतीय समाज मे तैयार कर के उनके उत्तर तलाशने उतार दिया गया है! भाई रस तो रस है, हम चाहे किसी मे ढूंढे या अपने पसंद के फल मे या साथी प्रेमी/ प्रेमिका मे, वो तो हमारी मर्ज़ी! जैसा हम चाहेगा या जब हमारा मन चाहे हम वैसा ही करेंगे!
अभी कुछ समय पहले हम बात कर रहे थे बोय्फ्रेंड/ गर्लफ्रेंड के कल्चर अर्थात संस्कृति की! जी हाँ ये दुःख उससे पूछो जिसको नीची निगाह से देखा गया हो इस कल्चर को ना अपनाने के लिया और साथ ही इसलिए की उसने अभी तक इस रसास्वादन को समझा ही नहीं और अभी तक अकेला या अकेली हे है! बेचारा/ बेचारी छी:! अब बही वो इंसान निंदनीय है ही जो पास्च्त्यता की चटाई पर सोय ना हो ! अब उस इंसान को आदिवासी समझ कर दुत्कारा ही जायेगा ना!
इससे भी ज्यादा और सोचने वाली बात है की कोई पानी मे उतरे और गीला ना हो, तो ये भला कैसे हो सकता है !नए आर्थिक समाजीकरण, वैश्वीकरण, कोर्पोरेट कल्चर जैसी उत्क्रिस्ट व्यवस्थाओ मे हर किसी से मिलना जुलना, उठना बैठना तो होता ही होगा! तो ऐसे मे हमाम से सूखा ही निकल आने की बात किसको हजम होगी! जब सब खुछ माहोल मे यानि कालेज, आफिस, पार्टी, डिस्को, पब इत्यादी मे पानी की तरह चारो ओर मौजूद है तो ऐसे मे सूखा रहना तो निहायत हेई शर्मा की बात है ही!
तो ऐसे रस्वादन को और हमाम कल्चर को पास्चात्यता ने हमारी ड्योढी पर ला कर रख दिया है! इन्द्रियों का
दोहन और भावनाओ का हनन तो वहा लगा ही रहता है !
जिस भारतीय सभ्यता मे संस्कार जैसे मानक को मनुष्य की श्रेष्ठता का मानक माना गया है, वहाँ इन्द्रियों के रसास्वादन ने पस्चात्यता की पैनी नोक से ऐसा वार किया है वह हलाहल खून की तरह अभी बह ही रहा है और अपनी जिन्दगी की भीख मांग रहा है!
सवाल ये भी है की हम क्यों पस्च्त्यता का डंका क्यों पीट रहे है! प्रेमाकांछा, प्रेमोन्माद, मिलाप, प्रजनन तो सृष्टी के सभी प्राणियों को मिला है चाहे वह पशु, पक्छी, कीट, जलचर, भारतीय, चीनी, अमरीकी मनुष्य कोई भी हो! सवाल और समस्या आसान नहीं है क्या हम सभी मनोवेग और इन्द्रोयो के दास हो गए है! प्रजनन और सम्भोग तो सभी पशु-पक्छी करते है और उसी मे लीन रहते और प्रकृति के नियम को पूरा करता है! पर मनुष्य किस मनोवेग का गुलाम हो रहा है!
रिलेसनन्शिप के नाम पर नए से नए रस्वादन के लिए तैयार रहता है! झूठ, धोखा, उन्माद, छल जैसे अमानवीय कृत्यों की नयी खेप तैयार कर रहा है !भारतीय कथाओ मे बडे से बडे ऋषियों को अप्सराओ ने अपने तप के पथ से हटा दिया था! और अब इसी रसावादन की अप्सरा ने आज हर किसी को भावनात्मकता और आत्मीय प्रेम के पथ से हटा कर रख दिया है है!
ये रसास्वादन अब आने वाले कल मे आधुनिकता का प्रतीक तो होगा परन्तु उसने भावनात्मकता को जड़ से उधेड़ कर रख दिया होगा!
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